Wednesday, April 29, 2015
फुर्सत
Tuesday, December 16, 2014
Monday, September 29, 2014
मेरी पसंद का मिर्ची का अचार डाल कर
कनस्तर में राशन भर कर
भगवान वाले आलीये में दिया जला कर
मेरी सेहत और सलामती मांग कर
चुपके से मेरे बटुए में एक शगुन का नोट छुपा कर
मिश्री खिला कर, डांट में लिपटा आशीर्वाद देकर
कंघे में गलती से अपनी ढलती उम्र कि सफेदी छोड़ कर
अक्स में मेरे लिए अपनी मुस्कान और आईने पर अपनी एक बिंदी छोड़ कर
मेरे बंजर बीहड़ में सावन कि तरह आयी
आखों में सावन लिए
माँ आज घर चली गयी
जाते-जाते ट्रेने कि आवाज़ से लड़ती दरवाज़े पर खड़ी कुछ बड़बड़ा रही थी
रोज़ फल खाना
बालों में तेल लगाना
दफ्तर में ज़यादा मत रुकना
नशे में मत डूबना.......
ट्रैन का साईरन मानो मुझे चिढ़ा रहा था
थोड़ी देर के बाद आवाज़ सुनाई देना बंद हो गयी
फिर छोटी होते होते माँ दिखाई देना बंद हो गयी
कुछ देर में वहीँ खड़ा रहा, अकेला
जाती हुई ट्रैन को देख
खाली खंडर से ज़हन में एक ख़याल गूंजा
बचपन में बड़ा होने कि होड़ थी
बड्डपन में बड़ा बनने कि दौड़ है
पर कभी कभी लगता है
शायद सपने देखने कि बहुत बड़ी कीमत दे रहा हूँ
बड़े शहर के माचिस के डिब्बे में रेह रहा हूँ
अपना घर छोड़ के मकान में रेह रहा हूँ
क्या में ठीक कर रहा हूँ?
Monday, October 28, 2013
राई का पहाड़ करता है
खाता चुरा कर है, फिर PR करता है
झुंड मैं चोड़ा रहता है,
लड़ाई मैं भगोड़ा रहता है
मैं तो गधा हूँ, मेहनत करता हूँ
बन्दर हुकम बजता है
हुक्मरानों की सीटी पर गुलाटी लगता है
केले देख कर कुल्हे हिलाता है
दूजों की टोपी अपने सर लगाकर इतराता है
और पकड़ा जाए तो मुस्कुराकर मुकर जाता है
मैं तो गधा हूँ, मेहनत करता हूँ
शेर मांद में पड़ा सुस्ताता है
छटे -चोमासे घुर्राता है
चूहों को धमकता है
शेरनी का कमाया खाता है
इसलिए उसके आगे चूहा बन जाता है
मैं तो गधा हूँ, मेहनत करता हूँ
Sunday, September 29, 2013
Wednesday, September 18, 2013
अनबन
Saturday, May 25, 2013
काफी दिनों बाद, आज कलम ने आवाज़ दी
Wednesday, March 27, 2013
देवी
बाज़ार में बेचीं जाती है
Saturday, October 6, 2012
जुर्रत
उबलो
Thursday, July 26, 2012
तनहा
तफ़री
चल लेकर आते हैं कश पहली सिग्रेट का, जो आधी-आधी पी थी हमने,
आ झाँक कर आते हैं कॉलेज की पहली क्लास में,
ज़रा फिर क्लास से भाग कर चलते हैं पीछे वाली टपरी पर,
शायद कोई पुरानी हंसी फिर गिर पड़े सर पर,
शायद गिरा पड़ा हो कोई ठहाका ज़मीन पर
शायद पेड़ के पीछे से निकल कर डरा दे हम ही हमें
चल ज़रा टूटे दिल को हौसला दे आयें,
जो गुमसुम हो उसे बहला आयें,
चल कुछ लम्हों के लिए आज को कह दें अलविदा
चल आजा ज़रा बीते सालों में कर के आते हैं तफरी ........
शुक्रिया, जगजीत साहिब
Monday, March 5, 2012
दुआ
Friday, March 2, 2012
पापा
पहली बार साइकिल सिखाते हुए बिन बताये, धीरे से छोड़ दी थी साइकिल
Monday, April 18, 2011
बाकी है अभी.....
बाकी है अभी.....
पैरों के नाखून में थोड़ी सी रेत
नींद से बंजर आँखों में थोड़ी सी शराब
कुछ बनते हुए ख्वाब, कल की तस्वीर
बाकी है अभी .....
जीभ पर पानी का नमक
आँखों में कुछ लम्हों का मंज़र
जो खुरेद कर छोड़ आये हैं
किनारे के किसी पत्थर पर
बाकी है अभी.......
चाँद से छुपकर,
गीली हवा के साज़ पर,
सोयी हुई तर्ज़ में लहरों ने गुनगुनाई थी
कान में धुंदली सी एक ग़ज़ल
बाकी है अभी........
जेब में गीली रेत,
एक गीले ख़त पर फैली हुई स्याही
में कुछ अशहार
कच्चे धागे में पिरोई सीपियों की एक माला
हाथों से लम्हों सी फिसलती सूखी रेत का एहसास
बाकी है अभी.........
Wednesday, February 23, 2011
आफ़ताभ और शाम
आफताभ का ऑफिस टाइम ख़त्म हुआ और रोशनी को एक झोले में डाल, पीठ पर लाद, चल दिया.
झोले के एक सुराख से समंदर की लहरों पर रिसती रोशनी की एक कतार बनता हुआ पता नहीं कहाँ जाता है रोज़ ? पीछा करते हुए, चल दिया में उस कतार पर.
रास्ते में, काफी अरसे बाद, आज शाम से मुलाक़ात हुई.
मुस्कुरा कर देखा उसने मेरी और, शायद पहचान लिया उसने मुझे.
- प्रांजल
Wednesday, October 20, 2010
स्तुति
शब्दों से अपने अपरम्पार
इश्वर करे तुम्हारी जय हो
चलते रहो तुम्हे न कोई भय हो
जय हो तुम्हारी जय हो
तुम में दीवाकर सी प्रबल ज्वाला
तुम तुच्छ मानव की पाठशाला
निश्छल जल प्रपात की तीव्र धार
तुम अग्नि दूत , तुम प्रबल ज्वार
लिख दो भविष्य कर दो निहाल
जग करे नृत्य और तुम दो ताल
- प्रांजल
Friday, September 17, 2010
कमरे में धुंधली लाल रोशनी के बीच, कुछ टूटे कांच के टुकड़ों थे | मेरे अक्स में दरारें तो कब से थीं, पर आज जो हुआ सहन नहीं कर पाया वो | क्या हुआ था, इससे क्या फर्क पड़ता है किसीको? लाल रोशनी में खो जाने की कोशिश कर रहा था मैं | तब कांच के टुकड़ों पर पानी की बूँद सी आवाज़ में, एक हमनफ़स ने कहा | खुद की ख़ुशी,खुद ही के हाथ में होती है, अपने दर्द को ख़ुशी का नाम दे दो तो वो ख़ुशी बन जाएगा | मैंने अपने अक्स को समेटना शुरू किया और हर बार की तरह, ग़ज़ल ने मेरा साथ दिया |
Wednesday, August 4, 2010
Friday, July 30, 2010
सुबह तड़के, स्टेशन पर, रैंगति ट्रेन के सायरन ने, फिर मेरा सपना तोड़ दिया. ट्रेन की खिड़की के साथ भागती मेरी बहन ने पुछा " सब रख लिया न ? कुछ छूट तो नहीं गया ? मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, पर अन्दर से किसी ने कहा " छूट तो गया, एक बार फिर से, घर ."
शायद
अक्सर उसकी हंसी से रोशनी हो जाती थी, अब अँधेरा सा रहता है.
मैंने जो नाम दिया था, बहुत पसंद था उसे.
उसके जाने के बाद एहसास हुआ, मैंने उसे कभी उस नाम से पुकारा नहीं.
क्या पता शायद लौट आती वो, क्या पता शायद नहीं जाती वो, क्या पता ?
आदत
Monday, March 22, 2010
वक़्त का क्या है आता है - जाता है.
जो दिल में होता था बता दिया करते थे,
अब वो सुन भी नहीं पाते, हमसे कहा भी नहीं जाता है.
इस मर्ज़ की शिफ़ा कहाँ कोई
किस्सा कोई होता नहीं की ज़ख्म उभर आता है.
सफ़र ख़त्म होने को है, बस कुछ कदम और
नम आँखों से अक्सर धुन्दला नज़र आता है.
परिंदे ने परवाज़ को मिलने की ठान ली
कहते हैं - तबीयत से चाहो, तो सब मिल जाता है.
Cheers
Pranjal
Mobile:09967709839
Blog:swayamsutra.blogspot.com
Monday, September 14, 2009
कुछ नया लिखो
अड्भुत लिखो , अनोखा लिखो
कुछ......
वही दिवा-निशा, वही चार दिशा
आज दिवा मैं शब्दों के बादल का ग्हुप अँधेरा लिखो
कुछ......
सोचो, देखो, रोको, पूछो
फुसफुसाओ मत, खुलकर चीखो
सब प्रश्न वही, कोई उत्तर नहीं
सब क्षीण वारों की व्यथा वही
प्रश्नों का प्रबल आक्रमण लिखो
एक नयी गंगा का उद्गम लिखो
कुछ....
कोनो-कुंचो से अब निकलो
मत अपनी आँखों को मीचो
हिंदी-उर्दू, सब साथ लिखो
आगाज़ लिखो ,शंख-नाद लिखो
स्पर्श लिखो, आवाज़ लिखो
अब कलमों को तीखा करो
स्याही कम हो तो रक्त भरो
पर अधुरा नहीं अब पूरा लिखो
कुछ ...
आज नहीं तो कल होगा
इस सोच को अब दफन करो
मुश्किल का हल मुश्किल में है
मिले नहीं तो यतन करो
और हल है ही नहीं, तो पैदा करो
आयास को थोडा बड़ा करो
कुछ नया लिखो
कुछ नया करो....
-प्रांजल
Saturday, August 29, 2009
खलिश
पैकर नहीं होते ,फ़क़त नाम हैं
मोहब्बत, इज्ज़त , शोहरत या इबादत
कुछ यूँही नहीं मिलता , सब के ऊँचे दाम हैं
चर्चों मैं हैं , पर्चों मैं हैं , वो नुजूम ऐ अर्श-ऐ-ज़ीम
सब ही ख़ास हैं यहाँ , अब न कोई आम है
वो दिन गए जब आफ़ताब से रोशन थी ये दुनिया
अब हुनर नहीं अहल-ऐ-दवल का एहतराम है
तबियत अगर नहीं हो तो ज़हमत नहीं करें
शायर हैं हम, शायारी ही अपना अंजाम है
- प्रांजल
नूजूम = सीतारे , अर्श-ऐ-ज़ीम = सातवाँ आसमान , आफताब = सूरज ,
अहल-इ-दवल = अमीर लोग