पहले कुछ होता था तो सहम जाते थे
अब तो शहर में वारदातें कम नहीं होती
बहुत मुद्दत से थपेड़े खा रही है कश्ती
अब हर गम में आँख नम नहीं होती
कल दिखी , आज मुस्कुराई , कल क्या पता
अक्सर जहाँ हम चाहते हैं कहानी ख़त्म नहीं होती
हमारा गम बड़ा है पर ये मै को कौन समझाये
कमबख्त हम में मिलती है फिर भी हम नहीं होती
Sunday, July 19, 2009
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