Sunday, September 29, 2013


आज की रात सपना देख लेते हैं 
सोयेंगे फिर कभी 
गलतियों से हाथ जलाकर देखते हैं 
तूफ़ान को मुंह चिढ़ा कर देखते हैं 
खतरे से पंजा लड़ा कर देखते हैं 
सपनों को बेफ़िक्री से फुलाते हैं 
फूट जाएँ तो नए ले आते हैं 
तहज़ीब के कपड़े उतार कर बेशरम बन जाते हैं 
सच की छुरी को गर्दन पर अड़ाते हैं 
तकलुफ़्फ़ के तेल में तो उम्र भर तलना है 
अभी ज़िन्दगी को कच्चा खा कर देखते हैं 
आज की रात सपना देख लेते हैं
सोयेंगे फिर कभी 

Wednesday, September 18, 2013

अनबन


एक दिन रात और मेरे ख्वाब में नींद के लिए लड़ाई हो गयी 
ख्वाब ने नींद को अपनी और खींचा और कहा "में नींद के बिना नहीं रह सकता" 
उस पर रात झल्लाई, "तुम्हें तो खुली आखों से दिन में देखा था, दिल से, नींद पर सिर्फ मेरा हक़ है"
रात और ख्वाब की छीना झपटी में नींद हाथ से छूट कर टूट गयी 
अब मुझसे रात भी रूठ गयी है
ख्वाब तो आखों में है, पर थोड़ा थक सा गया है, जम्हाई लेता रहता है 
रोज़ मैं और मेरा ख्वाब नींद का इंतज़ार करते हैं 
वक़्त हमें मूंह चिढ़ता है 
और वक़्त के साथ इतराती हुई रात रोज़ आखों के सामने से निकल जाती है