Monday, September 14, 2009

कुछ नया लिखो

कुछ नया लिखो
अड्भुत लिखो , अनोखा लिखो
कुछ......

वही दिवा-निशा, वही चार दिशा
आज दिवा मैं शब्दों के बादल का ग्हुप अँधेरा लिखो
कुछ......

सोचो, देखो, रोको, पूछो
फुसफुसाओ मत, खुलकर चीखो
सब प्रश्न वही, कोई उत्तर नहीं
सब क्षीण वारों की व्यथा वही
प्रश्नों का प्रबल आक्रमण लिखो
एक नयी गंगा का उद्गम लिखो
कुछ....

कोनो-कुंचो से अब निकलो
मत अपनी आँखों को मीचो
हिंदी-उर्दू, सब साथ लिखो
आगाज़ लिखो ,शंख-नाद लिखो
स्पर्श लिखो, आवाज़ लिखो
अब कलमों को तीखा करो
स्याही कम हो तो रक्त भरो
पर अधुरा नहीं अब पूरा लिखो
कुछ ...

आज नहीं तो कल होगा
इस सोच को अब दफन करो
मुश्किल का हल मुश्किल में है
मिले नहीं तो यतन करो
और हल है ही नहीं, तो पैदा करो
आयास को थोडा बड़ा करो
कुछ नया लिखो
कुछ नया करो....

-प्रांजल