Saturday, October 6, 2012

जुर्रत



जुर्रत 

आज नशे में एक ख्वाब की जुर्रत कर ली 
तेरे साथ अपने साथ की जुर्रत कर ली 

तेरे मुन्तज़िर तो हम हमेशा से हैं 
तेरी और नज़र उठाने की जुर्रत कर ली 

महफिलों में अक्सर देखा है तुझे 
हमने भी महफिलों में जाने की आदत कर ली 

दरीचे में दो पल के तेरे मंज़र के लिए 
ज़िन्दगी तेरे सामने वाले घर में बसर कर ली 

उबलो


उबलो 
हाथ फैलाना बंद करो, हाथ उठाओ 
तमाशा देख कर ताली मत बजाओ
सच की रोशनी से आखों को चून्धियाने दो 
अँधेरे में अंधे मत मरो

उबलो  
चीखों को संगीत की तरह मत सुनो 
सपनों को झूठ के धागों से मत बुनो 
हाथ की लकीरों के इशारों पर  मत चलो 
उड़ना चाहते हो तो गिरने से मत डरो

उबलो 
हंस कर अपनी हंसी मत उड़वाओ
खूटे की रस्सी की लम्बाई मत बड़ाओ
आज़ादी के मुखोटे को उतारो 
अपनी गुलामी का जश्न मत बनाओ