Sunday, July 19, 2009

पहले कुछ होता था तो सहम जाते थे
अब तो शहर में वारदातें कम नहीं होती

बहुत मुद्दत से थपेड़े खा रही है कश्ती
अब हर गम में आँख नम नहीं होती

कल दिखी , आज मुस्कुराई , कल क्या पता
अक्सर जहाँ हम चाहते हैं कहानी ख़त्म नहीं होती

हमारा गम बड़ा है पर ये मै को कौन समझाये
कमबख्त हम में मिलती है फिर भी हम नहीं होती