Monday, October 28, 2013

सियार जुगाड़ करता है
राई का पहाड़ करता है
खाता चुरा कर है, फिर PR करता है
झुंड मैं चोड़ा रहता है,
लड़ाई मैं भगोड़ा रहता है
मैं तो गधा हूँ, मेहनत करता हूँ

बन्दर हुकम बजता है
हुक्मरानों की सीटी पर गुलाटी लगता है
केले देख कर कुल्हे हिलाता है
दूजों की टोपी अपने सर लगाकर इतराता है
और पकड़ा जाए तो मुस्कुराकर मुकर जाता है
मैं तो गधा हूँ, मेहनत करता हूँ

शेर मांद में पड़ा सुस्ताता है
छटे -चोमासे घुर्राता है
चूहों को धमकता है
शेरनी का कमाया खाता है
इसलिए उसके आगे चूहा बन जाता है
मैं तो गधा हूँ, मेहनत करता हूँ 


Sunday, September 29, 2013


आज की रात सपना देख लेते हैं 
सोयेंगे फिर कभी 
गलतियों से हाथ जलाकर देखते हैं 
तूफ़ान को मुंह चिढ़ा कर देखते हैं 
खतरे से पंजा लड़ा कर देखते हैं 
सपनों को बेफ़िक्री से फुलाते हैं 
फूट जाएँ तो नए ले आते हैं 
तहज़ीब के कपड़े उतार कर बेशरम बन जाते हैं 
सच की छुरी को गर्दन पर अड़ाते हैं 
तकलुफ़्फ़ के तेल में तो उम्र भर तलना है 
अभी ज़िन्दगी को कच्चा खा कर देखते हैं 
आज की रात सपना देख लेते हैं
सोयेंगे फिर कभी 

Wednesday, September 18, 2013

अनबन


एक दिन रात और मेरे ख्वाब में नींद के लिए लड़ाई हो गयी 
ख्वाब ने नींद को अपनी और खींचा और कहा "में नींद के बिना नहीं रह सकता" 
उस पर रात झल्लाई, "तुम्हें तो खुली आखों से दिन में देखा था, दिल से, नींद पर सिर्फ मेरा हक़ है"
रात और ख्वाब की छीना झपटी में नींद हाथ से छूट कर टूट गयी 
अब मुझसे रात भी रूठ गयी है
ख्वाब तो आखों में है, पर थोड़ा थक सा गया है, जम्हाई लेता रहता है 
रोज़ मैं और मेरा ख्वाब नींद का इंतज़ार करते हैं 
वक़्त हमें मूंह चिढ़ता है 
और वक़्त के साथ इतराती हुई रात रोज़ आखों के सामने से निकल जाती है 

Saturday, May 25, 2013



काफी दिनों बाद, आज कलम ने आवाज़ दी 
और कहा, "भूल गए हो तुम मकसद अपना"
काफी दिनों बाद आज कागज़ ने झल्ला कर कहा, "आसान नहीं है लिखना कहा था मैंने तुमसे" 
खाली कागज़ मानो मुझे बिन लकीर का हाथ बन कर थप्पड़ मार रहा था
फिर खिड़की से आई सबा मैं एक लम्बी सांस लेने के बाद कलम प्यार से बोली, 
"अरे जज्बातों को अगर अन्दर रखेगा तो एक दिन दम तोड़ देंगे, 
लहू भी रखे-रखे स्याही की तरह सूख जाएगा
तकदीर की ज़ंजीर मैं तुम कसते चले जाओगे 
दोस्त, मौत की दहलीज़ पर बैठ कर उसका 
इंतज़ार करने से बड़ी कोई सजा नहीं 
अन्दर से राख होने से तो ख़ाक हो जाना अच्छा 
कलम की बातें सुनकर मेरी आखें भर आई 
हाथ की उंगलियाँ जो सुन्न पड़ चुकी थीं  
उनमें हरकत हुई 
काफी दिनों बाद जो अश्क आखों में जम 
गया था, बह गय ... 

- प्रांजल 

Wednesday, March 27, 2013


नंगी ताक़त ने आज़ादी के भ्रम का पर्दा हटा दिया 
आज सियासत ने इंसानियत को फिर से हरा दिया

रियासत के शहंशा का मकबूल तो हर शख्स यूं ही था,
पर जिसने मातम न मनाया उसे मकतूल बना दिया  

उसमें ख़ुदा रहता था, सब दिल से सजदा करते थे
झूठ के नक़ली सजदों ने उसे पत्थर का बुत बना दिया 

जिस बुज़ुर्ग शेर ने ज़िन्दगी भर जंगल की हिफाज़त की 
उसका जनाज़ा उठा नहीं की सियारों ने जंगल जला दिया 

देवी


बाज़ार में बेचीं जाती है 
घर में जलाई जाती है 
कोक में मारी जाती है 
पर्दे में छुपाई जाती है
जूती के नीचे दबाई जाती है 
पीछे चले तो कमज़ोर कहलाती है 
आगे चले तो कठोर कहलाती है
बोलने लगे तो चुप कर दी जाती है 
फिर भी बोले, तो मूजोर कहलाती है 
सड़क पर घूरी जाती है 
सरेआम लूट ली जाती है
लुट जाने की दोषी ठहराई जाती है  
उड़ने लगे तो क़ैद की जाती है 
आगे बड़ने पर टोक दी जाती है 
मैली होने पर छोड़ दी जाती है
एक बार मैली हो जाए, तो बार-बार मैली की जाती है
और हाँ ...मंदिर में पूजी जाती है, देवी