Monday, April 18, 2011

बाकी है अभी.....

बाकी है अभी.....

पैरों के नाखून में थोड़ी सी रेत

नींद से बंजर आँखों में थोड़ी सी शराब

कुछ बनते हुए ख्वाब, कल की तस्वीर

बाकी है अभी .....

जीभ पर पानी का नमक

आँखों में कुछ लम्हों का मंज़र

जो खुरेद कर छोड़ आये हैं

किनारे के किसी पत्थर पर

बाकी है अभी.......

चाँद से छुपकर,

गीली हवा के साज़ पर,

सोयी हुई तर्ज़ में लहरों ने गुनगुनाई थी

कान में धुंदली सी एक ग़ज़ल

बाकी है अभी........

जेब में गीली रेत,

एक गीले ख़त पर फैली हुई स्याही

में कुछ अशहार

कच्चे धागे में पिरोई सीपियों की एक माला

हाथों से लम्हों सी फिसलती सूखी रेत का एहसास

बाकी है अभी.........


Wednesday, February 23, 2011

आफ़ताभ और शाम

हवा नमकीन और गीली है यहाँ और मेरे होठों पर नमक सूख चूका है
आफताभ का ऑफिस टाइम ख़त्म हुआ और रोशनी को एक झोले में डाल, पीठ पर लाद, चल दिया.
झोले के एक सुराख से समंदर की लहरों पर रिसती रोशनी की एक कतार बनता हुआ पता नहीं कहाँ जाता है रोज़ ? पीछा करते हुए, चल दिया में उस कतार पर.
रास्ते में, काफी अरसे बाद, आज शाम से मुलाक़ात हुई.
मुस्कुरा कर देखा उसने मेरी और, शायद पहचान लिया उसने मुझे.

- प्रांजल