Saturday, August 29, 2009

खलिश

आज कल शहर में इंसान कहाँ रहे
पैकर नहीं होते ,फ़क़त नाम हैं

मोहब्बत, इज्ज़त , शोहरत या इबादत
कुछ यूँही नहीं मिलता , सब के ऊँचे दाम हैं

चर्चों मैं हैं , पर्चों मैं हैं , वो नुजूम ऐ अर्श-ऐ-ज़ीम
सब ही ख़ास हैं यहाँ , अब न कोई आम है

वो दिन गए जब आफ़ताब से रोशन थी ये दुनिया
अब हुनर नहीं अहल-ऐ-दवल का एहतराम है

तबियत अगर नहीं हो तो ज़हमत नहीं करें
शायर हैं हम, शायारी ही अपना अंजाम है

- प्रांजल

नूजूम = सीतारे , अर्श-ऐ-ज़ीम = सातवाँ आसमान , आफताब = सूरज ,
अहल-इ-दवल = अमीर लोग