चलने वाले को रुकना कहाँ आता है.
वक़्त का क्या है आता है - जाता है.
जो दिल में होता था बता दिया करते थे,
अब वो सुन भी नहीं पाते, हमसे कहा भी नहीं जाता है.
इस मर्ज़ की शिफ़ा कहाँ कोई
किस्सा कोई होता नहीं की ज़ख्म उभर आता है.
सफ़र ख़त्म होने को है, बस कुछ कदम और
नम आँखों से अक्सर धुन्दला नज़र आता है.
परिंदे ने परवाज़ को मिलने की ठान ली
कहते हैं - तबीयत से चाहो, तो सब मिल जाता है.
Cheers
Pranjal
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Monday, March 22, 2010
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