काफी दिनों बाद, आज कलम ने आवाज़ दी
और कहा, "भूल गए हो तुम मकसद अपना"
काफी दिनों बाद आज कागज़ ने झल्ला कर कहा, "आसान नहीं है लिखना कहा था मैंने तुमसे"
खाली कागज़ मानो मुझे बिन लकीर का हाथ बन कर थप्पड़ मार रहा था
फिर खिड़की से आई सबा मैं एक लम्बी सांस लेने के बाद कलम प्यार से बोली,
"अरे जज्बातों को अगर अन्दर रखेगा तो एक दिन दम तोड़ देंगे,
लहू भी रखे-रखे स्याही की तरह सूख जाएगा
तकदीर की ज़ंजीर मैं तुम कसते चले जाओगे
दोस्त, मौत की दहलीज़ पर बैठ कर उसका
इंतज़ार करने से बड़ी कोई सजा नहीं
अन्दर से राख होने से तो ख़ाक हो जाना अच्छा
कलम की बातें सुनकर मेरी आखें भर आई
हाथ की उंगलियाँ जो सुन्न पड़ चुकी थीं
उनमें हरकत हुई
काफी दिनों बाद जो अश्क आखों में जम
गया था, बह गय ...
- प्रांजल