हवा नमकीन और गीली है यहाँ और मेरे होठों पर नमक सूख चूका है
आफताभ का ऑफिस टाइम ख़त्म हुआ और रोशनी को एक झोले में डाल, पीठ पर लाद, चल दिया.
झोले के एक सुराख से समंदर की लहरों पर रिसती रोशनी की एक कतार बनता हुआ पता नहीं कहाँ जाता है रोज़ ? पीछा करते हुए, चल दिया में उस कतार पर.
रास्ते में, काफी अरसे बाद, आज शाम से मुलाक़ात हुई.
मुस्कुरा कर देखा उसने मेरी और, शायद पहचान लिया उसने मुझे.
- प्रांजल
Wednesday, February 23, 2011
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