आज की रात सपना देख लेते हैं
सोयेंगे फिर कभी
गलतियों से हाथ जलाकर देखते हैं
तूफ़ान को मुंह चिढ़ा कर देखते हैं
खतरे से पंजा लड़ा कर देखते हैं
सपनों को बेफ़िक्री से फुलाते हैं
फूट जाएँ तो नए ले आते हैं
तहज़ीब के कपड़े उतार कर बेशरम बन जाते हैं
सच की छुरी को गर्दन पर अड़ाते हैं
तकलुफ़्फ़ के तेल में तो उम्र भर तलना है
अभी ज़िन्दगी को कच्चा खा कर देखते हैं
आज की रात सपना देख लेते हैं
सोयेंगे फिर कभी