Wednesday, September 18, 2013

अनबन


एक दिन रात और मेरे ख्वाब में नींद के लिए लड़ाई हो गयी 
ख्वाब ने नींद को अपनी और खींचा और कहा "में नींद के बिना नहीं रह सकता" 
उस पर रात झल्लाई, "तुम्हें तो खुली आखों से दिन में देखा था, दिल से, नींद पर सिर्फ मेरा हक़ है"
रात और ख्वाब की छीना झपटी में नींद हाथ से छूट कर टूट गयी 
अब मुझसे रात भी रूठ गयी है
ख्वाब तो आखों में है, पर थोड़ा थक सा गया है, जम्हाई लेता रहता है 
रोज़ मैं और मेरा ख्वाब नींद का इंतज़ार करते हैं 
वक़्त हमें मूंह चिढ़ता है 
और वक़्त के साथ इतराती हुई रात रोज़ आखों के सामने से निकल जाती है 

1 comment:

Anonymous said...

Very interesting conflict :)
liked the concept ...